मई माह की शुरुआत के साथ पूरे देश में गर्मी बढ़ती जा रही है जिससे निजात पाने के लिए सैलानी हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड में आते है। बावजूद इसके उत्तराखंड के जंगलों की बढ़ती आग राज्य भर में 155 वनाग्नि घटनाएं दर्ज हुईं. इनमें से 7 घटनाएं तो संरक्षित वाइल्डलाइफ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के भीतर की घटनाएं हैं।आग पर काबू पाने में नाकाम वन विभाग पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। यही नहीं उत्तराखंड के जंगलों में धधक रही आग से अब ग्लेशियरों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसमें ब्लैक कार्बन जमने से ग्लेशियर के गलने की रफ्तार भी बढ़ सकती है।
नुकसान पहुंचा रही है वनाग्नि
पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुकी वनों की आग के साथ ही पराली जलाए जाने से कई रिहाइशों इलाकों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। पहाड़ी इलाकों में जंगल की आग ने बेशकीमती वन संपदा को तो तबाह किया ही है। बढ़ती आग में हवा की ख़राब गुणवत्ता भी खासी खराब है। आलम ये हैं कि आम तौर पर जहां पर्यावरण में ब्लैक कार्बन 2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता था, वहीं इन दिनों ये 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच गया है। यही नहीं, आग लगने से कार्बन के साथ ओज़ोन की मात्रा में भी खासा इज़ाफा हुआ है।