Saturday, July 27, 2024
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Homeअन्यनशे के सौदागरों की लगातार धड़पकड़ के बावजूद बन रहा उड़ता नैनीताल

नशे के सौदागरों की लगातार धड़पकड़ के बावजूद बन रहा उड़ता नैनीताल

पूरे उत्तराखंड में युवा शक्ति का दम भरने वाले क्या आज अपने राज्य के युवाओं को नशे की गिरफ्त से बचाने में कामयाब हो पा रहे है? इस सवाल का जवाब अगर ढूढने निकलेंगे तो हर गली मोहल्ले से खुद एक नशेड़ी आकर कहेगा नहीं! उत्तराखंड में सबसे ज़्यादा नशीला जिला बनकर नैनीताल उभर रहा है जहां युवाओं को सूरज डूबने से पहले ही नशे में डूबता देखा जा सकता है।

एक ओर उत्तराखंड के सीएम नशामुक्त उत्तराखंड का नारा देते है और दूसरी तरफ उत्तराखंड के नशे से उड़ते जिलों में सबसे ज़्यादा प्रभावित नैनीताल जिला है। इसे पुलिस की नाकामी कहें या लापरवाही कि पुलिस दिखाने को तो हर रोज नशे के सौदागरों की धड़पकड़ जोरो पर कर रही है लेकिन बावजूद इसके नैनीताल जिले में नशे की तस्करी थम नही रही है। नैनीताल जिला टूरिज्म के लिए जाना जाता था लेकिन अब नैनीताल मादक पदार्थों की तस्करी का हब बनता जा रहा है। आंकड़ों की हवा हवाई बातों से परे अगर ज़मीनी हकीकत की बात करें तो आज नैनीताल में युवा इस कदर नशे की गिरफ्त में है कि युवाओं की साथ साथ आज कई परिवार पतनोन्मुख होते जा रहे है। यूपी से हल्द्वानी होते हुए मादक पदार्थों की तस्करी हमारे पहाड़ी इलाकों में बेखौफ हो रही है पर्वतीय इलाकों के युवाओं को स्मैक,चरस,हीरोइन,ड्रग्स,नशीली दवाओं, अफीम सहित तमाम नशीले इंजेक्शन की खेप बड़े से लेकर छोटे स्तर पर सुगमता के साथ उपलब्ध हो रही है। ऐसे में भले ही हमारी संवैधानिक व्यवस्था नशे के खिलाफ कार्यवाही की बात करती हो लेकिन सच तो यही है कि उड़ता नैनीताल जिला आज दूर से भले ही खूबसूरत दिखाई जान पड़ता हो लेकिन अंदरूनी तौर पर ये तबाह हो रहा है।नशे की रैंक में आज नैनीताल जिला पूरे प्रदेश में टॉप पर गिना जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक युवाओं की नसों में नशे का ज़हर घोलने वाले इस कारोबार में शामिल कैरियर कोड वर्ड का प्रयोग किया जाता है,जिसके तहत नशे की गोलियां और कैप्सूल “बादाम” नाम से बेचा जाता है। इसमें कोड वर्ड पाउडर रखा गया है,ये नशे के बादाम अब केवल युवा ही नही बल्कि महिलाओं तक भी पहुंचाया जा रहा है। यानी घर की रीढ़ कही जाने वाली महिलाएं भी बर्बाद की जा रही है।इन जानलेवा नशे की गिरफ्त में आये युवाओं में कुछ बातें सामान्य तौर पर देखी जाती है। उनके व्यवहार में एकाएक बदलाव शुरू हो जाता है। असमय उठना,क्षणिक उत्तेजित हो जाना,चिड़चिड़ापन, भूख न लगना,वजन कम होना,अकेले रहना,कम बात करना,भीड़ से बचना,अनिंद्रा की शिकायत, कभी बहुत ज़्यादा थकावट तो कभी अचानक फुर्ती आ जाना,खुद को मारने पर आतुर सा हो जाना,चीजे उठापटक करना,जैसे तमाम लक्षण नशे की गिरफ्त में युवाओं में देखने को मिलते हैं।

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार कहते है कि युवाओं में स्मैक का नशा बढ़ता जा रहा है अभिभावकों को बच्चों पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि अभिभावकों की नजरों के सामने कितने घँटे ये युवा रहते हैं?जो बच्चे पढ़ने जाते है उन्हें बाहरी वातावरण में कब कौन नशा उपलब्ध करवा रहा है इसके बारे में अभिभावक क्या जानते होंगे?पुलिस की नाक के नीचे आखिर नशे की खेप युवाओं तक कैसे पहुंच रही है? ज़ाहिर है कि अभिभावकों के सामने तो घर पर कोई नशा डिलीवरी नही करता होगा? तो अभिभावकों के सर पर ये बात मढ़ना कि अभिभावक ध्यान दे कितना उचित है? नशे का प्रचार प्रसार इतना व्यापक हो गया है कि बच्चे किशोरावस्था में नशे की चपेट में आ रहे है जिसमे अभिभावकों को इस बात की भनक तक नही लगती उनके बच्चे नशे के काले कारोबार का हिस्सा बन चुके है। ये स्तर अनुमानतः कक्षा 6 से शुरू हो जाता है। बच्चे घर से ट्यूशन कोचिंग को निकलते है इसी रास्ते उन्हें नशे के कारोबारी नशे की लत लगाने लगते है। आज इन्ही मासूम बच्चों को नशे के तस्कर अपना ग्राहक बना रहे है,और यही बच्चे एक उम्र के पड़ाव में आते आते नशे की पूरी तरह चपेट में घिर जाते है। और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ये बच्चे नशे की गिरफ्त में इस कदर आ चुके होते है कि नशे के लिए चोरी,लूटपाट, हिंसक घटनाओं को अंजाम देने से भी नही चूकते। नशे से बर्बाद होते नैनीताल जिले की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि पूर्व में वो नशे को लेकर कई जनहित याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल कर चुके हैं। उनका कहना है कि 2018 में उन्होंने उत्तराखंड में फैलते नशे के कारोबार के मद्देनजर एक जनहित याचिका दायर की थी जिस पर माननीय न्यायालय ने सख्त आदेश दिए थे जिनका पालन नही हुआ। उन्होंने बताया कि जल्द ही वो एक और जनहित याचिका दायर करने जा रहे है।

 

 

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