अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य के इको सेंसेटिव जोन में शामिल सभी गांवों को इसके दायरे से बाहर कर दिया गया है। क्षेत्रिय जनप्रतिनिधियों व वन विभाग के प्रयास से इसकी अंतिम अधिसूचना भी हो गई है।पहले इसमें करीब 722 गांव शामिल थे, जिस कारण से इन गांव में विकास कार्य प्रभावित होते थे ।इस अभ्यारण की स्थापना 600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में की गई थी। अभयारण्य बनाने का मूल उद्देश्य क्षेत्र में वनस्पतियों एवं वन्यजीवों की जैव विविधताओं को बचाए रखने के लिए था। अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण की स्थापना वर्ष 1986 में हुई थी।यहां मुख्य रूप से तेंदुआ, हिम तेंदुआ, हिम भालू, भालू, भरल, थार, कस्तूरी मृग पक्षियों में मोनाल, कोकलास, फीजेंट, पहाड़ी तीतर, हिमालयन स्नो कॉक पाए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सीमा के कारण पश्चिमी, दक्षिणी और पूर्वी भाग की ओर अभ्यारण का शून्य विस्तार है। अन्य स्थान पर क्षेत्रीय स्तर पर रहने वाले आदिम जनजाति वनराजी समुदाय के साथ सार्वजनिक परामर्श के कारण शून्य विस्तार है। इस प्रकार यह प्रदेश का पहला इको सेंसेटिव जोन बन गया है जिसका शून्य विस्तार है। क्षेत्र के लोग लंबे समय से इको सेंसेटिव जोन का दायरा हटाने की मांग कर रहे थे, जो इसकी अंतिम अधिसूचना जारी होने के साथ पूरी हो गई। इस बात से पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर छा गई है ।क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अभ्यारण्य का दायरा हटने से अब इस क्षेत्र के गांवों में भी विकास हो सकेगा।
